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जब केन्हु से हाथ में छल्ला / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना
Kavita Kosh से
जब केन्हु से हाथ में छल्ला निसानी आ गेल।
सोच क उहे बात आंख में पानी आ गेल॥
आएना मंें गौर से न देखली चेहरा कहियो।
गेल कहिया लरिकपन कहिया जवानी आ गेल॥
भोर से सांझ तक घुन में गांव पूरा डूबल रहल।
कनकनाइत ठार रहे कि इआद नानी आ गेल॥
कनिया-पुतरिया खेल में न दिन के सुध न रात के।
इआद हमरा फेनू उहे कहानी आ गेल॥
तिलक-दहेज के सोच क मर रहल बेटी के बाप।
आंख के आगे जबसे बेटी सेयानी आ गेल॥