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जब खेतों में पकी हुई पीली बालें लहराती हैं / मिख़अईल लेरमन्तफ़ / मदनलाल मधु

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जब खेतों में पकी हुई पीली बालें लहराती हैं
और जिस समय ताज़ादम वन पवन संग करता सर-सर,
हरे- हरे पत्ते की मीठी छाया के नीचे जिस क्षण
उपवन में आलूचा कोई लाल-लाल लटके छिपकर;

सन्ध्या की अरुणाभा या फिर स्वर्ण उषा के मृदु क्षण में
जब सुगन्धमय ओस कणों से भीगा-भीगा, धुला-धुला,
झाड़ी के नीचे से अपना प्यारा-प्यारा शीश हिला
करता है अभिवादन मेरा लान्दिश फूल श्वेत, उजला;

दर्रे में से बहनेवाला जब कोई ठण्डा झरना
मेरे ख़यालों पर छा जाता, जब बनकर धुन्धला सपना,
बुदबुद करता राज भरा-सा, क़िस्सा मुझे सुनाता है
शान्त उसी धरती का, जिससे ख़ुद वह बहता आता है,—

मिट जाते हैं उस क्षण मेरे मन से भय औ’ चिन्ताएँ
और झुर्रियाँ भी मस्तक पर नज़र नहीं मेरे आएँ,
इस पृथ्वी पर उसी समय, मेरी सुख से होती पहचान,
और गगन में उसी समय मैं देखा करता हूँ भगवान ...
 
मूल रूसी से अनुवाद : मदनलाल मधु

और अब यह कविता मूल रूसी भाषा में पढ़ें
            Михаил Лермонтов
                      ****

Когда волнуется желтеющая нива,
И свежий лес шумит при звуке ветерка,
И прячется в саду малиновая слива
Под тенью сладостной зеленого листка;

Когда, росой обрызганный душистой,
Румяным вечером иль утра в час златой,
Из-под куста мне ландыш серебристый
Приветливо кивает головой;

Когда студеный ключ играет по оврагу
И, погружая мысль в какой-то смутный сон,
Лепечет мне таинственную сагу
Про мирный край, откуда мчится он, —

Тогда смиряется души моей тревога,
Тогда расходятся морщины на челе, —
И счастье я могу постигнуть на земле,
И в небесах я вижу бога...
 
Февраль 1837