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जब तक यह साँस रहे / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव

देवासुर
संग्राम हमे लड़ना है
जब तक यह साँस रहे

इसी रणांगन
में हम
मन की गाँठे खोल रहे
इसी रणांगन में हम
खोज प्यार के बोल रहे

देवासुर के
रूपों
 को पढ़ना है
जब तक यह साँस रहे

देव असुर
दोनों ने ही
अमृत का पान किया
दोनों ही अमर हुए,व्यापे
युग ने गान किया

द्वन्द्व पथों पर
ही सबको चलना है
जब तक यह साँस रहे

कोशिश है
आनन्द मार्ग पर
हिल मिल साथ चलें
पथ के दोनों ओर सुवासित
सरसिज ब्रह्म खिलें

मानवता के
मंत्र नये गढ़ना है
जब तक यह साँस रहे