भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब तलक दम रहा है आंखों में / नासिर काज़मी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब तलक दम रहा है आंखों में
एक आलम रहा है आंखों में

गिरया पैहम रहा है आंखों में
रात भर नम रहा है आंखों में

उस गुले-तर की याद में ता-सुबह
रक्से-शबनम रहा है आंखों में

सुबहे-रुख़्सत अभी नहीं भूली
वो समां रम रहा है आंखों में

दिल में एक उम्र जिसने शोर किया
वो बहुत कम रहा है आंखों में

कभी देखी थी उसकी एक झलक
रंग-सा जम रहा है आंखों में।