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जब तूँ हमरा के आगे-पीछे / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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जब तू हमरा के आगे-पीछे बन्ह देलऽ
त बूझाला कि अब छुटकारा ना मिली।
जब तूं हमरा के नीचे फेंक देलऽ
त बूझाला कि अब खड़ा ना हो सकब।
बाकिर तूं ही
फिर हमार सब बंधन खोल देलऽ
हमरा के नीचे से ऊपर उठा लेलऽ
एहीं गईं तूं अपना बाँह के झूला पर
हमरा के जिनगी भर झुलावत रहेलऽ।
तूंही हमरा के डेरवा के
हमरा अऊँधी के हटावेलऽ
तूं हीं हमरा के जगा के
हमरा भय के भगावेलऽ
कबो आपन झलक दिखा के
हमरा प्राण के निहाल करेलऽ
फिर छने में ना जानीं जे कहाँ लुका जालऽ
बुझा ला कि अब तहरा के ना पाएब
तले तूं फेनू हमरा के पुकारे लागेलऽ
एहीं गईं तूं अपना बाँह का झूला पर
हमरा के जिनगी भर झुलावत रहेलऽ