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जब तै पूरी हुई पढाई जी मेरा दुख पाग्या / बलबीर राठी 'कमल'

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जब तै पूरी हुई पढाई जी मेरा दुख पाग्या
कै बूझेगा बात मेरी मैं जीवण तै तंग आग्या

मैं तै ठाठ तै पढ्या करूं था घर के दुख पा रहे थे
मेरा खर्च पुगावण नै रूखा-सूखा खा रहे थे
मेरी पढाई खतम हौण पै आस घणी ला रहे थे
मैं सारे दुख दूर करूगां न्यू दिल समझा रहे थे
न्यूं सोचूं था बखत ईब दुख दूर करण का आग्या

जित अरजी दयों मेरे जिसां की लाईन लागी पावै
मां-बापां नै होया कुप्यारा घर खावण नै आवै
ताऊ-चाचे न्हूं कहें सैं तौं बड़ी नौकरी चाहवै
छोटी-मोटी टोहले नै क्यों हाथ बड़ी कै लावै
सारी बातां नै सुण-सुण कै जी मेरा घबराग्या

भूखा-भाणा फिरूं भरमता ना पीया ना खाया
भाभी फिर बी ताने मारै के टूम घड़ा के लाया
बड्डा भाई छो में आज्या तों हमनै किसा पढ़ाया
कितनी बड्डी गलती कर दी न्योंए घर लुटवाया
तेरी पढाई नैं के चाटैं, तो सारा घर उघवाग्या

सारे सपने धूळ में मिलगे मुशकिल जीणा होग्या
माणस-माणस के तान्यां का जहर भी पीणा होग्या
बेरा नां के सोच्या करदा, मैं माणस हीणा होग्या
के ब्याह-टेले की बात करैं मनै मुशकिल जीणा होग्या
या बिपता तौ न्युएं रहैगीं ‘ कमल’ मनैं समझाग्या