तब आसमानी देवताओं ने
धरती पर घोड़ों को उतारा
ताकि
उदासी वसन्त को निगल न जाए
नदियाँ बहती रहें
मृत्यु नसों में थक्के के रूप में
कहीं जम न जाए।
ताकि
जड़ताएँ टूटती रहें
पृथ्वी के गुरुत्व में
हम पत्थर न हो जाएँ
बेहद विनम्र होकर
कर सकें उसे धारण
ताकि धरती और पैरों के बीच
थोड़ा-सा आकाश बचा रहे।
ताकि
घोड़ों की टापों की आवाज़
लोरियों में संगीत बनकर बहें
ताकि यह विश्वास बना रहे
कि चलते रहने से आकाशगंगाओं की
दूरी पाटी जा सकती है।