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जब प्यार तेरा मुझको मयस्सर न हुआ था / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'

जब प्यार तेरा मुझको मयस्सर न हुआ था
ग़म कहते हैं जिसको वो मुकद्दर न हुआ था

आँखों से तो अश्कों की हुआ करती थी बरसात
पहले तो कभी दामने-दिल तर न हुआ था

वीरान था जब तेरी मोहब्बत से मेरा दिल
आबाद था, बरबाद मेरा घर न हुआ था

भूलूं भी तो कैसे भला मैं पहली मुलाक़ात
तब आपका दिल फूल था पत्थर न हुआ था

अब नर्क है संसार, कभी स्वर्ग था लोगो
जब आदमी कोई भी सितमगर न हुआ था

सीने से लगाकर मुझे महका दिया तुमने
वरना मैं कभी इतना मुअत्तर न हुआ था

कहते हैं 'रक़ीब' अब है मुक़द्दर का सिकन्दर
इस तरहा ये ज़र्रा कभी अख्तर न हुआ था