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जब बरात चढ़ा कै करी थी चलण की त्यारी / मेहर सिंह

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वार्ता- जब पवन की बारात चलती है तो कवि उसका किस प्रकार चित्रण करता है सुनिए इस रागनी में

जब बरात चढ़ा कै करी थी चलण की त्यारी।टेक

बाप दादा चाचा ताऊ सिंगर कै ने होगे त्यार
राजी राजी बोल रहे आपस मैं करैं थे प्यार
बनड़े ही का रूप ऐसा देखण आवै बारम्बार
बनड़ै ही कै धोरै बैठ्या बनड़े ही का छोटा भाई
सुनहरी था ताज सिर पै चवर डोलै खड्या नाई
बटेऊ नै मोड़ बांध्या भाभी घालण आगी स्याई
हो सै नेग चुची प्यावण का फिर आगी झट महतारी।

बाप दादा चाचा ताऊ जांगे सभी साथ मैं
पील सोत बलता चालै नाई जी के हाथ मैं
झमा झम होण लागी पवन की बारात मैं
पालकी मैं छोरा बैठ्या जुड़कै कहार चाले
फुलझड़ी छुटण लागी छुटते अनार चाले
बर्छी भाले और कटारी हो कै नै होश्यार चाले
सेहरे उपर तेग तणी चमकै थी नग्न कटारी।

सांग तमासे गाजे बाजे रंडियो का नाच गाणा
भरे थे उमंग मैं सारे सजा हुआ ठाक बाणा
राजा की बरात मैं इन चीजां का आणा जाणा
दिन सा निकाल दिया रोशनी बणाई ऐसी
नींद भूख प्यास नहीं रात्री जगाई ऐसी
पहुंचगी बरात ऐसी किसै कै ना आई ऐसी
चलते चलते दिन लिकड़ आया मानी कोन्या हारी।

महेन्द्रगढ़ कै धोरै आगी लाई नहीं जरा वार
बरात कै अगाड़ी पाया बेटी आला खड़ा त्यार।
जनवासे मैं ठहरा दिये कोली भर-भर करें प्यार
साबन तेल धर्या पाया बारी बारी न्हाण लागें
दुधां के गिलास आगे मिठाई भी खाण लागे
नौकर चाकर त्यार खड़े बिस्तरें बिछाण लागे
मेहर सिंह वर देखण खातिर नगरी झुकगी सारी।