जब बारिश आती है / नवनीता देवसेन / पापोरी गोस्वामी
जब बारिश आती है
तो पूरा घर नीला पड़ जाता है
फिर काँपता हुआ नीचे धँसने लगता है
अनन्त समय जैसे कही से आकर घर में भर जाता है
जैसे असीम हवाएँ खिसका देती है पूरा घर नदी के तट तक ।
मैं नाव बनकर नदी में तैरती हूँ
भीगती हुई डोलती हूँ
काँपती हुई चलने लगती हूँ
वो सामने क्षितिज की रेखा है
जैसे चारों तरफ़ उफन रहा है
जैसे कही कोई नहीं है
जैसे जार जार रोने के साथ बन्द हो जाती है घर की आवाज़ ।
कैसे अद्भुत्त नए इन्द्रजाल में
एक ही पल में दसों दिशाएँ आलोड़ित
जैसे सभी बदल जाएँगे असल रूप में
जैसे ये सब नृत्य है, छन्द है, उज्जवल रंग है
निद्रा खुल जाने के बाद प्रवाहित ये बारिश
कभी कभी ऐसा होता है
तभी मैं प्रार्थना करती हूँ
हे आकाश
घर स्वप्न देखने लगे और बारिश हो ।
मूल बाँगला से पापोरी गोस्वामी द्वारा अनूदित