भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब बुढ़ापे में तुम्हारा जिस्म ये ढल जायेगा / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब बुढ़ापे में तुम्हारा जिस्म ये ढल जायेगा
बस तभी तो प्यार सच्चा भी तुम्हे मिल जायेगा

पल रही दिल में हमारे ज्यों तमन्ना आरजू
बस उसी मानिंद दिल में दर्द भी पल जायेगा

सूर्य की किरणें सुबह जब हैं जमीं को चूमतीं
पद्म सर के पद्म-सा मन भी मेरा खिल जायेगा

छोड़ना उम्मीद मत अब हौसला टूटे नहीं
हो अँधेरा आस का दीपक वहीं जल जायेगा

जिंदगी की राह में गिनती न मोड़ों की करो
यदि लगाया वृक्ष श्रम का तो न निष्फल जायेगा