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जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते हैं लोग / साहिर लुधियानवी

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जब भी जी चाहे नई दुनिया बसा लेते हैं लोग

एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग


याद रहता है किसे गुज़रे ज़माने का चलन

सर्द पड़ जाती है चाहत हार जाती है लगन


अब मौहब्बत भी है क्या एक तिजारत के सिवा

हम ही नादान थे जो ओढ़ा बीती यादों का कफ़न

वरना जीने के लिए सब कुछ भुला लेते हैं लोग


जाने वो क्या लोग थे जिनको वफ़ा का पास था

दूसरे के दिल पे क्या गुज़रेगी यह अहसास था


अब हैं पत्थर केसनम जिनको एहसास न ग़म

वो ज़माना अब कहाँ जो अहले दिल को रास था

अब तो मतलब के लिए नाम-ए-वफ़ा लेते हैं लोग