भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब मुझे मेरे गुरु ने बरख़ास्त किया / गणेश पाण्डेय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं तनिक भी विचलित नहीं हुआ
न पसीना छूटा, न लड़खड़ाए मेरे पैर
सब कुछ सामान्य था मेरे लिए
जब मुझे मेरे गुरु ने बरख़ास्त किया
और बनाया किसी खुशामदी को अपना
प्रधान शिष्य ।

बस इतना हुआ मुझसे
कि मैं बहुत जोर से हँसा ।