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जब मुझे मेरे गुरु ने बरख़ास्त किया / गणेश पाण्डेय
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मैं तनिक भी विचलित नहीं हुआ
न पसीना छूटा, न लड़खड़ाए मेरे पैर
सब कुछ सामान्य था मेरे लिए
जब मुझे मेरे गुरु ने बरख़ास्त किया
और बनाया किसी खुशामदी को अपना
प्रधान शिष्य ।
बस इतना हुआ मुझसे
कि मैं बहुत जोर से हँसा ।