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जब मैं तुमसे विलग होता हूँ / अज्ञेय

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 जब मैं तुम से विलग होता हूँ, तभी मुझे अपने अस्तित्व का ज्ञान होता है।
जब तुम मेरे सामने उपस्थित नहीं होतीं, तभी मैं तुम्हारे प्रति अपने प्रेम का परिणाम जान पाता हूँ।
जब तुम दु:खित होती हो, तभी मुझे यह अनुभव होता है कि तुम्हें प्रसन्न रखना मेरे जीवन का कितना गौरवपूर्ण उद्देश्य है।
जब मैं तुम्हारे प्यार से वंचित होता हूँ, तभी यह संज्ञा जाग्रत होती है कि मेरे हृदय पर तुम्हारा आधिपत्य कितना आत्यन्तिक है।
क्योंकि तुम्हें पा लेने पर तो मैं रहता ही नहीं।
मैं उसी पक्षी की तरह हूँ जो यह जानने के लिए, कि उस का नीड़ कितना सुरक्षित है, बार-बार उस से उड़ जाता है और दूर से उस का ध्यान किया करता है।

दिल्ली जेल, 22 नवम्बर, 1932