भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब सब गाइ भईं इक ठाईं / सूरदास
Kavita Kosh से
राग कल्यान
जब सब गाइ भईं इक ठाईं । ग्वालनि घर कौं घेरि चलाई ॥
मारग मैं तब उपजी आगि । दसहूँ दिसा जरन सब लागि ॥
ग्वाल डरपि हरि पैं कह्यौ आइ । सूर राखि अब त्रिभुवन-राइ ॥
जब गायें एक स्थान पर एकत्र हो गयीं, तब उन्हें घेर कर गोपबालकों ने घर की ओर हाँक दिया । उसी समय मार्ग में दावानल प्रकट हो गया, दसों दिशाओं में सब कुछ जलने लगा । गोपबालक भयभीत होकर श्याम के समीप आये । सूरदास जी कहते हैं, सब बोले- त्रिभुवन के स्वामी! अब रक्षा करो ।'