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जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रस्ता सुनसान हुआ / मोहसिन नक़वी

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जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रस्ता सुनसान हुआ
अपना क्या है सारे शहर का इक जैसा नुकसान हुआ

मेरे हाल पे हैरत कैसी दर्द के तनहा मौसम में
पत्थर भी रो पड़ते हैं इनसान तो फिर इंसान हुआ

उस के ज़ख्म छुपा कर रखिये खुद उस शख्स की नज़रों से
उस से कैसा शिकवा कीजे वो तो अभी नादान हुआ

यूं भी कम-आमेज़ था "मोहसिन" वो इस शहर के लोगों में
लेकिन मेरे सामने आकर और ही कुछ अन्जाम हुआ