भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब से गई है छोड़ कर आवारगी मुझे / शीन काफ़ निज़ाम

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब से गई है छोड़कर आवारगी मुझे
मैं ज़िंदगी को ढूंढता हूँ ज़िंदगी मुझे

कितने दरीचे ख़्वाबों के इक साथ खुल गए
क्या जाने किसने दूर से आवाज़ दी मुझे

पूछूँ मिले जो याद तिरी राह में कहीं
सब्रो सुकूँ के साथ कहाँ ले गई मुझे

लगता है अब के उस ने भुला ही दिया 'निज़ाम'
अब के बरस तो आई नहीं याद भी मुझे