जब से गई है छोड़कर आवारगी मुझे 
मैं ज़िंदगी को ढूंढता हूँ ज़िंदगी मुझे 
कितने दरीचे ख़्वाबों के इक साथ खुल गए 
क्या जाने किसने दूर से आवाज़ दी मुझे 
पूछूँ मिले जो याद तिरी राह  में कहीं 
सब्रो सुकूँ के साथ कहाँ ले गई मुझे 
लगता है अब के उस ने भुला ही दिया 'निज़ाम'
अब के बरस तो आई नहीं याद भी मुझे