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जब से दुनियां बसी आज तक ना ऐसा हाल हुआ / हरीकेश पटवारी

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जब से दुनियां बसी आज तक ना ऐसा हाल हुआ
हिंद के लिए बुरा साबित दो हजार चार का साल हुआ

अंग्रेजां नै म्हारे देश का बिल्कुल चकनाचूर किया
लूट लिया धन माल हिंद का अपणा घर भरपूर किया
ऐसी डाली फूट सगा भाई भाई से दूर किया
बंधी बुहारी खोल बिखेरी कितना बड़ा कसूर किया
रंगा गादड़ बैठ तख्त पर जिन्हां शेर की खाल होया
इस वजह से सत्पुरुषों का बुरी तरह से काळ होया

ऐसा आया इंकलाब कोई उजड़्ग्या कोई बसण लाग्या
कोई मरग्या कोई कटग्या भाग्या कोई फसण लाग्या
कोई हारग्या कोई जीतग्या कोई रोवै कोई हंसण लाग्या
किसे का दीवा गुल होग्या किसी कै लैम्प चसण लाग्या
कोई मिटग्या, पिटग्या, कुटग्या कोई लुटग्या कंगाल होया
कोई-कोई जो जबरदस्त था लूट कै मालामाल होया

किसे की लाकड़ी किसे नै ठाई किसे का धन घर धरै कोई
कोई कमजोरा कोई जोरावर कोई डरावै डरै कोई
कहते सुणे लिख्या भी देख्या भरे वही जो करै कोई
अपणी आंखां देख लिया अब करै कोई और भरै कोई
करोड़ों लाश बही दरिया मैं नहरों का जल लाल होया
सरसा की जा ढाब देखिए जमा खून का ताल होया

सतयुग मैं तो मिथुन-मिथुन नै विकट रूप धर मार दिया
त्रेता मैं तुल नै तुल का कर हनन धरण मैं डार दिया
द्वापर मैं भी मिथुन-मिथुन नै पकड़ कै केश सिंहार दिया
कळयुग में बिन जंग कुंभ नै कुंभ तख्त से तार दिया
अब मकर के मकर हनेगा निश्वय “हरिकेश” को ख्याल होया
हिंद हमारा बिना वजह जेर बे अलीफ और दाल होया