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जब से देखा है तेरे हाथ का चांद / नासिर काज़मी
Kavita Kosh से
जब से देखा है तेरे हाथ का चांद
मैंने देखा ही नहीं रात का चांद
ज़ुल्फें-शबरंग के सद राहों में
मैंने देखा है तिलिस्मात का चांद
रस कहीं, रूप कहीं, रंग कहीं
एक जादू है ख़यालात का चांद।