भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब से लिखना-पढ़ना जाना / अवधेश्वर प्रसाद सिंह
Kavita Kosh से
जब से लिखना-पढ़ना जाना।
छोड़ दिया सब आना-जाना।।
अपनों से क्या कहना मुझको।
सब सिक्कों को अपना जाना।।
वो प्यार मुहब्बत क्या जाने।
अपनों को वह सपना जाना।।
दिखता तो है भोला-भाला।
वह पर धन हथियाना जाना।
उलझा जीवन उसका इसमें।
वह कब किसको अपना जाना।।
जो जान हथेली पर लेकर।
रक्षा उनका करना जाना।
बचपन से ही स्वभिमानी हूँ।
दुश्मन से बस लड़ना जाना।
वह भूल गये इन बातांे को।
अपने मुंह मिठ्ठू बनना जाना।।