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जब स्त्रियाँ नहीं होंगी / रंजना जायसवाल
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कोई भी हो
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जो भी हो
देश
काल
स्थान
अलग-अलग हो भले
व्यक्ति
मन
मुँह
बातें एक जैसी ही स्त्री के बारे में
रात तो रात
दिन में भी
फुरसत के क्षणों में
वही बातें एक जैसी
लाम पर बंदूकें साफ करते फौजी हो
या थाने पर गपियाते सिपाही
साहित्य कला संस्कृत कर्मी हो
या दफ्तर के कर्मचारी
गाड़ीवान हों या मिस्त्री-मजदूर
सबका मनोरंजन स्त्री, उसकी देह
और उसके झूठे-सच्चे किस्से
कितना रंगीन है
उनका चेहरा
दिन
और जीवन
स्त्री के होने से
क्या कभी ये भी सोचते हैं
स्त्री की बात करने वाले
जिस दिन नहीं होंगी स्त्रियाँ
कैसी होगी यह दुनिया?