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जब हम नहीं होंगे / स्वाति मेलकानी
Kavita Kosh से
सच तो है
कि एक दिन
हम दोनों में से कोई एक
अकेला रह जाएगा
या शायद हम दोनों ही न हों।
उन सारे पलों की यादें
धुँधली पड़ जाएँगी
जिन्हें हमने
अपनी अपनी खिड़कियों से
चाँद को देखते हुए काटा था।
वे बातें
जो रातों से भी लम्बी होकर
अधूरी रह जाती थी
आज भी हवा में घूम रही हैं।
जाने कितनी बार मैंने
उन्हें पकड़कर
कोशिश की थी
दोबारा सुनने की।
इसमें नाकामियाब होने पर भी
मैं परेशान नहीं होती
क्योंकि तुम्हारा होना
काफी है इस भरोसे के लिये
कि वे बातें थी।
सोचो,
जब हम नहीं होंगें
तो कौन पकड़ेगा
उन बातों को
तितलियों की तरह।