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जब हुआ सच्चाई का इज़हार वो / उत्कर्ष अग्निहोत्री

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जब हुआ सच्चाई का इज़हार वो,
हादसों का बन गया अख़बार वो।

कोई हंगामा खड़ा होगा जहाँ,
कह रहा दुश्यन्त के अशआर वो।


छत का जिसपे सबसे ज़्यादा वज़्न था,
गिर गई है आज इक दीवार वो।

फिर लगेगी द्रौपदी ही दाँव पे,
लग गया है आज फिर दरबार वो।

दूर से दीखा था जो प्रवचन भजन,
पास आकर के दिखा बाज़ार वो।

भागवत अनुराग की कैसे पढ़े,
सुन रहा है वक्त का चीत्कार वो।