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जब हे सिरी रामचदर चलला बिआह करे / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

रामचंद्र विवाह करने चले। रास्तेॅ में उन्हें प्यास लगी। घर से सीता निकली। उसने राम को पानी पीने को दिया। राम ने सीता से परिचय पूछा। सीता ने अपना पूरा परिचय देते हुए कहा-‘मैं राजा जनक की बेटी और राजा दशरथ की पतोहू हूँ। कौशल्या मेरी सास हैं तथा श्रीराम मेरे पति।’ राम परिचय पाकर हँसने लगे और अपनी शुभ यात्रा पर खुश होने लगे। परन्तु, सीता मन ही मन दुःखी होने लगी कि अब मेरे मायके का खेल, सखी-सहेलियों का साथ तथा मेरी माता की गोद सब कुछ छूट गया।
यह गीत द्विरागमन के समय का प्रतीत होता है

जब हे सिरी रामचंदर चलला बिआह करे, राम के लागल पियास हे।
येहि रे जनकपुर केओ<ref>कोई</ref> नहिं आपन रामे पियासल जाय हे॥1॥
घर सेॅ बाहर भेलि सीता सीतल देबी, पीबि न लेहो सिरी राम हे।
आहे हमरो गगरिया सीतल जूरी<ref>ठंडा</ref> पनियाँ, पीबि न लेहो सीरी राम हे॥2॥
किनकर छहु सीता बारी कुमारी, किनकर छहु पुतोह हे।
आहे किनकर छहु सीता अलख<ref>बहुत अधिक, वर्णनातीत</ref> दुलरुआ, सामी के नाम कहि देहु हे॥3॥
राजा जनक जी के बारी कुमारी, राजा दसरथ के पुतोह हे।
आहे रानी कोसिलेआ के अलख दुलरुआ, सामी के नाम सिरी राम हे॥4॥
हँसथिन रामचंदर मुख सोभे पनमा, बिहुँसै हुनकर दूनू ठोर<ref>ओष्ठ</ref> हे।
आहे भले ही जतरा<ref>यात्रा; शुभ मुहूर्त्त</ref> हम बाहर भेली, सीता मुख दरसन भेल हे॥5॥
आहे कानै<ref>रोती है</ref> सीता दाय पटुका<ref>गले में डालने का वस्त्र</ref> पोछै लोर, रहि रहि मन पछताय हे।
आहे कौने कुजतरे<ref>कुयात्रा; खराब यात्रा से; अशुभ मुहूर्त्त में</ref> हम घरअ सेॅ बाहर भेली, बैरी भेलै सीरी राम हे॥6॥
कहमाहिं छूटल सुपती मौनियाँ, कहमाहिं सखि सब लोग हे।
कहमाहिं छूटल अम्माँ सुनैना रानी, जिनि कोखि लेल अवतार हे॥7॥
कोठियहिं<ref>कोठी पर; अनाज रखने का मिट्टी का बना हुआ ढक्कनदार घेरा</ref> छूठल सुपती मौनिया, मड़बहिं सखि सब लोग हे।
आहे मंदिरहिं छूटल अम्माँ सुनैना रानी, जिनि कोखि भेल अवतार हे॥8॥

शब्दार्थ
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