भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जमाने से रिश्ता निभाना न आया / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जमाने से रिश्ता निभाना न आया।
उसे अपना दामन बचाना न आया॥

कयामत की शोखी थी बरपा बदन में
उसे रूप फिर भी सजाना न आया॥

निगाहों में शर्मो हया थी मचलती
मगर उसको चिलमन झुकाना न आया॥

पिये जा रही थी वह दर्दे जिगर को
करें क्या जो आँसू बहाना न आया॥

नहीं देखता कोई आँसू किसी के
ये समझी मगर चोट खाना न आया॥