जयप्रकाश कर्दम / परिचय
हिन्दी पटटी में दलित साहित्य को सामने लाने, उसको स्थापित करने और परंपरागत हिन्दी साहित्य के समांतर दलित साहित्य के बुनियादी सरोकारों को उजागर करने में जिन दलित साहित्यकारों का महत्वपूर्ण योगदान है उन दलित साहित्यकारों में डा. जयप्रकाश कर्दम एक जाना-पहचाना नाम है। वह दलित साहित्य के एक सशक्त हस्ताक्षर हैं और अपने व्यक्तित्व, सृजनकर्म के बूते अपने समकालीनों में काफी चर्चित और समादृत हैं। डा. जय प्रकाश कर्दम एक बहुआयामी प्रतिभावाले साहित्यकार और चिंतक हैं। कविता, कहानी और उपन्यास लिखने के अलावा दलित समाज की वस्तुगत सच्चाइयों को सामने लानेवाली अनेक निबंध व शोध पुस्तकों की रचना व संपादन भी उन्होंने किया है। उनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान है- उनके संपादन में प्रतिवर्ष निकलने वाली "दलित साहित्य वार्षिकी। उनके अथक प्रयासों के चलते दलित साहित्य वार्षिकी, दलित साहित्य में दलित सोच और सृजन का एक बुनियादी आधार बन गई है।
"तिनका-तिनका आग" डा. जय प्रकाश कर्दम का दूसरा कविता संग्रह है। काफी लंबे अंतराल के बाद उनका यह दूसरा कविता संग्रह प्रकाशित हुआ है। अपने पहले कविता संग्रह "गूंगा नहीं था मैं" के साथ उन्होंने दलित कविता के क्षेत्र में पदार्पण किया था।