जय-जय जवान, जय-जय किसान / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
जय-जय जवान, जय-जय किसान॥
तुम दोनों के बल पर ही क़ायम है स्वदेश का स्वाभिमान।
जब कभी किसी आक्रामक ने बढ़ कर सीमा को किया पार,
कानों में जब-जब पड़ी तुम्हारे दुःख भरी माँ की पुकार।
युद्धस्ािल में तुमने जवान! तब झेले वज्रों के प्रहार,
रख दिया लिा कर मिट्टी में दुश्मन का तुमने अहंकार॥
यशगान तुम्हारा गाते हैं उज्ज्वल अतीत और वर्तमान।
जय-जय जवान, जय-जय किसान॥
धर रूप शिवाजी का कर में करवाल कभी थामी कराल,
बन राणा गुरु गोविन्द सिंह दिखलाया रण-कौशल विशाल।
रुकना-झुकना आता न तुम्हें, हो सन्मुख चाहे क्रूर काल,
अपना सिर देकर भी रक्खा निज मातृभूमि का उच्च भाल॥
है धन्य तुम्हारा राष्ट्र-प्रेम, तप, त्याग सुरक्षा व्रत महान।
जय-जय जवान, जय-जय किसान॥
ओ भारत के कर्मठ किसान! तुम भूमि-पुत्र कहलाते हो,
श्रम की पूजा में ही अपने जीवन की भेंट चढ़ाते हो।
सैनिक लड़ता समरांगण में, तुम उसे सशक्त बनाते हो,
पोषण कर सबके प्राणों का, अपना कर्त्तव्य निभाते हो॥
तुम ध्यान यही रखते हरदम महफ़ूज वतन की रहे शान।
जय-जय जवान, जय-जय किसान॥
हे कर्मवीर! करता आया भारत तुम पर है सदा नाज़,
तुम प्रहरी हरदम जागरूक, है हाथ तुम्हारे देश-लाज।
है सदा तुम्हारे बल पर ही जीवित सारा मानव-समाज,
भूखे नंगे रह स्वयं, सजाते औरों के हित सौख्य-साज॥
हिमगिरि से अविचल निज पथ पर, तुम शक्ति पुंज सामर्थ्यवान
जय-जय जवान, जय-जय किसान॥
आशा तुम पर है लगी तुम्हीं स्वर्णिम भविष्य-निर्माता हो,
तक़दीर तुम्हारी मुट्ठी में, तुम भारत भाग्य विधाता हो।
चिन्ता न तुम्हें निज प्राणों की तुम, अखिल राष्ट्र के त्राता हो,
कष्टों पर सहते कष्ट स्वयं निर्भय, सबके सुख दाता हो॥
टूटे न आन, बिगड़े न शान तुम प्रतिपल रहते सावधान
जय-जय जवान, जय-जय किसान॥