जय हो / विमल राजस्थानी
जय हो नवीन ‘गण-तंत्र’ तुम्हारी जय हो
तुममें मानव आनंदित हो, निर्भय हो
लाखों ने यह बिरूआ लोहू से सींचा
आँसू के मिस, हृदयों का रक्त उलीचा
जय हो, जिनने सीनों पर गोली झेली
हँस-हँस कर गर्दन पर तलवारें ले लीं
वेदी पर हँस कर शीष धरे थे जिनने
माँ के अंचल में फूल भरे थे जिनने
जय हो, चरणों में शीष नवाता हूँ मैं
अब मन की थोड़ी पीर जताता हूँ मैं
आजादी मिली, कटे लोहे के बंधन
प्राणों में व्यापा मधुर-मदिर स्पंदन
सोचा हमने-सुख-षान्ति तनिक पायेंगे
रोये थे कल तक, किन्तु आज गायेंगे
‘नोआखली’, ‘पंजाब’ भुलाया हमने
दर्दों को थपकी मार सुलाया हमने
पलकों में आषा-स्वप्न झुलाया हमने
रो-गा कर रोता दिल बहलाया हमने
सोचा ‘बापू’ का आषीर्वाद मिलेगा
शोणित-सिंचित यह मुक्ति-प्रसून खिलेगा
पर हाय ! निर्दयी से न गया यह देखा
मिट गयी कोटि भाग्यों की उज्जवल रेखा
नत हुआ हिमालय का सिर, गंगा रोयी
राही को मंजिल मिलते-मिलते खोयी
पर ज्यों ही हमने पीछे घूम, निहारा
हँस वीर ‘नेहरू’ ने हमको ललकारा
‘क्या हूआ कि हमने राष्ट्र-पिता को खोया
तरू फूल रहा ‘बापू’ ने जिसको बोया
मंजिल तक आखिर पहूँचे हम रो-गाकर
विकसित तरू को देखा हमने मुस्का कर
विकसित तरू, फुनगी पर ‘स्वराज्य’ मुस्काता
गणतंत्र-सूर्य पावन प्रकाष फैलाता
जय हो प्रकाष के पंुज ! तुम्हारी जय हो
तुम में जन-गण आनंदित हो, निर्भय हो
जय ‘मानवेन्द्र राजेन्द्र !’ राष्ट्र के स्वामी
जय हो ‘पटेल’ ‘नेहरू’ शांति के हामी
जय हो, भारत की शक्ति देख ले त्रिभुवन
निर्माण नवीन, सृजन नव, नव परिर्वतन
जय हो नवयुग के राम ! तुम्हारी जय हो
कवि के लो कोटि प्रणाम ! तुम्हारी जय हो