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जरा कम-अक्ल ही होती तो मुनासिब होता / शिवांगी गोयल
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ज़रा कम-अक़्ल ही होती तो मुनासिब होता
किसी 'कोमा' में पड़े मरीज़-सी हालत है
मुझे पता है कौन सुई में ज़हर भर कर
मेरी नसों में चुभो रहा है,
अपने होठों को मुतबस्सुम किये
मेरा मुस्तक़बिल हाथों में लिए
मेरी जान ले रहा है;
मैं ख़ुद को मरते देख रही हूँ!