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जरा जगाबऽ / राम सिंहासन सिंह
Kavita Kosh से
ताक रहली हे इहाँ हम राह तोहर-
हर हृदय में जग रहल हे चाह तोहर!
आदमी के आदमी तू अब बना दऽ
प्रेम-करुणा आऊ दया के लौ जगा दऽ!
अब न फेरा दे इहाँ उन्माद कोई
कर न पावइ घर हम्मर बरबाद कोई!
प्रेम के सरिता बहा दऽ ई धरा पर
सान्ति-दुख से घर सजा द धरा पर!
जात-धरम-भरम भँवर से पार कर दऽ
हर हृदय में प्यार अउ विस्वास भर दऽ!
दानवी हिंसा जगत् में जल रहल हे
दुख-दाह में संसार भीसन पल रहल हे!
जागके तू प्यार के गंगा बहा दऽ
सान्ति के जयघोष फिर से तू जगा दऽ!
भारत-भूमि ई निस्चय जगतइ जरा जगाबऽ
हमरे से ई दुनिया जगतइ तब सन्देस सुनाबऽ!