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जरा तरस हम पे खाइये तो / रंजना वर्मा

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जरा तरस हम पे खाइये तो
हमारी महफ़िल में आइये तो

न कीजिये शर्मसार खुद को
निगाह अपनी उठाइये तो

नज़र में रख लेंगे कैद कर के
नज़र नज़र से मिलाइए तो
सही न जाये जो कैदे उल्फ़त
नक़ाब रुख से हटाइये तो

बिना हमारे जियेंगे कैसे
ये राज़ भी अब बताइए तो

उठाएंगे नाज़ आप के हम
मनायेंगे रूठ जाइये तो

चले ही आएंगे शीश के बल
हमें भी दिल से बुलाइये तो

रखेंगे दिल मे हमेशा हमदम
हमारा दिल भी लुभाइये तो

न सिर्फ कीजे वफ़ा की बातें
वफ़ा किसी से निभाइये तो