भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जरा तरस हम पे खाइये तो / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
जरा तरस हम पे खाइये तो
हमारी महफ़िल में आइये तो
न कीजिये शर्मसार खुद को
निगाह अपनी उठाइये तो
नज़र में रख लेंगे कैद कर के
नज़र नज़र से मिलाइए तो
सही न जाये जो कैदे उल्फ़त
नक़ाब रुख से हटाइये तो
बिना हमारे जियेंगे कैसे
ये राज़ भी अब बताइए तो
उठाएंगे नाज़ आप के हम
मनायेंगे रूठ जाइये तो
चले ही आएंगे शीश के बल
हमें भी दिल से बुलाइये तो
रखेंगे दिल मे हमेशा हमदम
हमारा दिल भी लुभाइये तो
न सिर्फ कीजे वफ़ा की बातें
वफ़ा किसी से निभाइये तो