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जलते-जलते जिंदगी ,इक दिन धुआँ बन जाएगी / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
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जलते-जलते जिंदगी ,इक दिन धुआँ बन जाएगी
आग बुझ कर रेत पर, काला निशाँ बन जाएगी
मैं मिलूं गुलशन में तुमको ,ये जरूरी तो नहीं
याद मेरी , गुलशनो की , दास्ताँ बन जाएगी
मैने कब मांगा है , पूरा पेड़ सारी टहनियाँ
सिर्फ़ इक डाली ही, मेरा आशियाँ बन जाएगी
भस्म गर हो भी गया तो, घेर लूंगा हर दिशा
उड़ते-उड़ते राख मेरी, आसमाँ बन जाएगी
फ़ूल भी, सपने भी इसमें, आस भी, अहसास भी
मेरी खुद की जिंदगी, मेरा जहाँ बन जाएगी