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जलाँजलि / जय गोस्वामी / रामशंकर द्विवेदी

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तुम हो स्वच्छ जल,
जल तल पर

शाम की रोशनी पड़ने से
स्पष्ट हो उठते हैं
पत्थर के टुकड़े

देखते ही प्रतीत होता है,
ये तो नहीं हैं प्रस्तर खण्ड

पत्थर में ढोकों की तरह
एक कवि तुम्हें दे गया है
जलाँजलि के रूप में मन,

शाम को तुम आईं
तुम्हारे आ जाने पर
पाने का आनन्द भरा हुआ है —
वृक्ष - वनस्पति रंगीन विकाल में

मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी