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जल नहीं पाये दिए क्यों रात भर / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
जल नहीं पाये दिये क्यों रात भर
करवटें बदला किये क्यों रात भर
मोतियों से शबनमी क़तरे गिरे
उम्र थोड़ी सी जिये क्यों रात भर
चाँदनी जब चाँद से मिलने चली
रास्ते जागा किये क्यों रात भर
एक लम्हा भी पलक झपकी नहीं
ख़्वाब के वादे किये क्यों रात भर
है फ़लक बरसा रहा मदहोशियाँ
जाम फिर ग़म के पिये क्यों रात भर
रास्ता सूना न आना था उन्हें
राह पर देखा किये क्यों रात भर
पन्थ पथरीला बड़ी लम्बी डगर
जख़्म काँटों ने दिये क्यों रात भर