भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जल समाधि / तोताबाला ठाकुर / अम्बर रंजना पाण्डेय
Kavita Kosh से
पौषपार्बो की रात्रि मेघ घनघोर बरसता था
भीषण था समुद्र ऊँची लहरें नाग की भाँति
पछाड़ खाती थी माथा और पूँछ पटक-पटककर
कछार पर
किन्तु मेरा कछार अब श्वास में गहरा नीला
जल था,
तिमिर ब्रह्म की भाँति
सब और व्याप्त था केवल क्षणांश को
दामिनी के दमक में छोड़ दिया जो संसार
माया की भाँति कौंध उठता था
अभिसारिका मैं गुरुजनों की दृष्टि बचाती
सखियों से छल कर, छन्द बान्ध चरणों में चली
अपने प्रियतम काल से रति करने
उद्दण्ड समुद्र के चित्र जो बोईबाड़ी में पिता के
पुस्तकालय में देखा करती थी वही सत्य हुए मेरे जीवन में
अन्तर केवल इतना है कि उनमें पालोंवाली नौका होती थी
मेरे निकट केवल यह शरीर है
विदा बन्धुओं !