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जवानी : बुढ़ापो / सांवर दइया
Kavita Kosh से
हां ऽऽ,
बा आवती दीसी तो सरी
पण ठैरी कोनी
अळघै सूं ई निसरगी
दे झोलो
ले ओलो
लोग कैवै-
जवानी ही बा !
पण म्हारै कनै तो है अबै
सळां भरी चामड़ी
गूगळी दीठ
पींडियां में सरणियां
बूकीया में चबका
म्हैं जाणू-
बुढापो है ओ !