भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जसगीत / सलाम ईरानी
Kavita Kosh से
जय जय जय हो माता, जय हो जय हो माता
माता बम्लेश्वरी तोर महिमा अपरंपार हे जगमा
तोर सरन म जेहर आथे सोये भाग ला अपन जगाथे
निर्धन अब धनवान सबोझिन द्वार मा तोरे सीस नवाथे
जे मनखे हर द्वार मा आथे ओखर बिगड़ी हा बनजाथे
जेती दिखेव ओती तोर मया के हाथ भंडार हे जगमा
सुंदर मुकुट हा मुड़मा सांझे, चंदा जस तोर रूपहा लागे
धनूस अब तिरसूल, चक्र गदा अब तोर संग मइय्या बाघ विराजे
जेब जेब जगमग जोत जले हे सरग असन मंदिर हा लागे
डोंगरगढ़ के पहाड़ी मा मइय्या तोर दरबार ह जगमा
संतोषी दुर्गा महा काली सारदा अम्बे सबों मन भाये
सबरी जगत मा मनखे हा जाने सबके रूप हा तोर मा समाये
हे महासकती बम्लर माता तोर जगत मा सबो गुन गाये
युग युग ले सदा तोर नाव के जय जय का हे जगमा