जसुमति, किहिं यह सीख दई / सूरदास
राग धनाश्री
जसुमति, किहिं यह सीख दई ।
सुतहि बाँधि तू मथति मथानी, ऐसी निठुर भई ॥
हरैं बोलि जुवतिनि कौं लीन्हौं, तुम सब तरुनि नई ।
लरिकहि त्रास दिखावत रहिऐ, कत मुरुझाइ गई ॥
मेरे प्रान-जिवन-धन माधौ, बाँधें बेर भई ।
सूर स्याम कौं त्रास दिखावति, तुम कहा कहति दई ॥
भावार्थ :-- (गोपियाँ कहती हैं ) `यशोदा जी ! तुम को यह (निषठुरता की शिक्षा किसने दी? पुत्र को बाँधकर मथानी लिये ( स्वयं) दही मथ रही हो ! इतनी निष्ठुर हो गयी हो तुम ?'(तब यशोदा जी ने) धीरे से युवतियों को बुला लिया (और बोलीं ) `तुम सब अभी नवीन तरुणियाँ हो (तुम्हें अनुभव तो है नहीं । अरे) लड़के को भय दिखालाते रहना चाहिये । (जिसमें वह बिगड़ न जाय । इस पर) तुम सब क्यों म्लान हो गयी हो ?' सूरदास जी कहते हैं (गोपियाँ बोलीं-) `हे भगवान् ! तुम यह क्या कहती हो? श्यामसुन्दर को भय दिखला रही हो? अरे ! ये माधव तो हमारे प्राण हैं, जीवन धन हैं, इन्हें बाँधे देर हो गयी । (अब तो छोड़ दो ।)'