भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जसुमति लै पलिका पौढ़ावति / सूरदास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राग कैदारौ


जसुमति लै पलिका पौढ़ावति ।
मेरौ आजु अतिहिं बिरुझानौ, यह कहि-कहि मधुरै सुर गावति ॥
पौढ़ि गई हरुऐं करि आपुन, अंग मोर तब हरि जँभुआने ।
कर सौं ठोंकि सुतहि दुलरावति, चटपटाइ बैठे अतुराने ॥
पौढ़ौ लाल, कथा इक कहिहौं, अति मीठी, स्रवननि कौं प्यारी ।
यह सुनि सूर स्याम मन हरषे, पौढ़ि गए हँसि देत हुँकारी ॥

भावार्थ :-- श्रीयशोदा जी श्यामसुन्दर को गोद में लेकर छोटे पलँग पर सुलाती हैं । मेरा लाल आज बहुत अधिक खीझ गया! यह कहकर मधुर स्वर से गान करती हैं। वे स्वयं भी धीरे से लेट गयीं; तब श्यामसुन्दर ने शरीर को मोड़कर (अँगड़ाई लेकर)जम्हाई ली । माता हाथ से थपकी देकर पुत्र को पुचकारने लगी, इतने में मोहन बड़ी आतुरता से हड़बड़ाकर उठ बैठे । (तब माता ने कहा) `लाल! लेट जाओ! मैं अत्यन्त मधुर और कानों को प्रिय लगने वाली एक कहानी सुनाऊँगी ! सूरदास जी कहते हैं कि यह सुनकर श्यामसुन्दर मन में हर्षित हो उठे, लेट गये और हँसते हुए हुँकारी देने लगे ।