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जहाँ में ‘हाली’ किसी पे अपने सिवा भरोसा न कीजियेगा / अल्ताफ़ हुसैन हाली
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जहाँ में ‘हाली’ किसी पे अपने सिवा भरोसा न कीजिएगा
ये भेद है अपनी ज़िन्दगी का बस इसकी चर्चा न कीजिएगा
इसी में है ख़ैर हज़रते-दिल! कि यार भूला हुआ है हमको
करे वो याद इसकी भूल कर भी कभी तमन्ना न कीजिएगा
कहे अगर कोई तुझसे वाइज़! कि कहते कुछ और करते हो कुछ
ज़माने की ख़ू<ref>आदत</ref> है नुक़्ताचीनी<ref> आलोचना</ref>, कुछ इसकी परवा न कीजिएगा
शब्दार्थ
<references/>