भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जहानाबाद / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
जो चूल्हे कभी ठीक से सुलगे नहीं
उन चूल्हों ने चखा
बारूद का स्वाद
पंचायत की पथराई आँखें
पढ़ती नहीं
भारतीय दंड संहिता की
पहेलियाँ
लक्ष्मणपुर बाथे हो या
शंकरबीघा
गिद्धों का झुँड
उमड़ता है
हरेक दिशा से
वे भूखे पेट ही लोरी सुनकर
सोनेवाले बच्चे थे
अनपढ़ स्त्रियाँ थीं
आज़ादी की साजिश के शिकार
पुरूष थे
जिन्हें प्रभुओं की सेना ने
मार डाला
जहानाबाद आपके मानचित्र पर
एक काला धब्बा है
और भूखे नंगे लोगों की
आँखों में
आग का गोला