Last modified on 13 जनवरी 2015, at 23:41

ज़नाब जंग का मुददआ तलाश कर लेना / महेश कटारे सुगम

ज़नाब जंग का मुददआ तलाश कर लेना ।
ज़रूरी जीत का जरिया तलाश कर लेना ।

तुम्हारे पैर की ख़ातिर नहीं बने हैं हम,
ज़नाब दूसरा जूता तलाश कर लेना ।

तमाम भेंट चढ़ाओगे जाके मन्दिर में,
यतीम भूख का मारा तलाश कर लेना ।

इसी तरह से जो बैठे रहोगे क़िस्मत पर,
तो अपनी मौत का कपड़ा तलाश कर लेना ।

अभी तो और भी ग़म आएँगे रुलाने को,
रखोगे सर को वो कन्धा तलाश कर लेना ।

सुगम ये पाप की गठरी को जिसमें फेंक सको,
कहीं पे एक वो गंगा तलाश कर लेना ।