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ज़माना तो जमाना ही रहेगा / हरेराम समीप
Kavita Kosh से
ज़माना तो जमाना ही रहेगा
तुम्हारे दिल की चीखें क्यों सुनेगा
ये उपवन काटकर बस्ती बनी है
यहाँ दुःस्वप्न का जंगल उगेगा
तू ज़ालिम के यहाँ पर है मुलाज़िम
ये सोना रोज पीतल पर चढे.गा
अगर पढ़ने दिया उसको, तो तय है
ये 'छोटू’ काम करना छोड़ देगा
न पूछो मुफलिसी का हाल उससे
फफककर वो अभी रोने लगेगा
उड़ोगे पूरी ताकत से तो तय है
तुम्हें ये आसमाँ छोटा पड़ेगा