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ज़माने का हर दर्द मैं पी रहा हूँ / हरिराज सिंह 'नूर'

ज़माने का हर दर्द मैं पी रहा हूँ।
ज़रा देखिए किस तरह जी रहा हूँ!

गुनाहों की गठरी को मैं फेंक आया,
तुम्हें इस से क्या, कल मैं जो भी रहा हूँ!

सफ़र तय करें अनगिनत साथ मेरे,
मगर मैं तो तन्हा क़मर ही रहा हूँ।
 
ज़ुबां के ज़रा-सा फिसलने से पहले,
लबों को मैं अपने अभी सी रहा हूँ।

वफ़ाओं की दुनिया सजाए हुए हूँ,
उमीदों पे ऐ ‘नूर’ मैं जी रहा हूँ।