भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़मीं करवट बदलती है बलाये-नागहाँ होकर / यगाना चंगेज़ी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़मीं करवट बदलती है बलाये-नागहाँ होकर।

अजब क्या सर पै आये पाँव की ख़ाक आसमाँ होकर॥


उठो ऐ सोनेवालो! सर पै धूप आई क़यामत की।

कहीं यह दिन न ढल जाये नसीबे-दुश्मनाँ होकर॥


अरे ओ जलनेवाले! काश जलना ही तुझे आता।

यह जलना कोई जलना है कि रह जाये धुआँ होकर॥