ज़मीन की कविता / महमूद दरवेश / विनोद दास
एक पिछड़े गाँव में एक सुस्त शाम को
अधखुली आँखों में
उतर आते हैं तीस बरस
और पाँच जंग
मैं हलफ़ लेकर कहता हूँ कि मेरे अनाज की बाली
आनेवाला समय रखेगा
और गायक आग
जो कुछ अजनबियों के बारे में गुनगुनाएगा
और शाम फ़कत एक दूसरी शाम जैसी ही होगी
और गायक गुनगुनाएगा ।
उन्होंने उससे पूछा —
क्यों गाते हो तुम ?
वह देता है जवाब —
मैं गाता हूँ चूँकि गाता हूँ ...।
उन्होंने उसकी छाती की तलाशी ली
पर वहाँ मिला फ़कत उसका दिल
उन्होंने उसके दिल की तलाशी ली
लेकिन वहाँ मिले सिर्फ़ उसके लोग
उन्होंने उसकी आवाज़ की तलाशी ली
लेकिन वहाँ मिला केवल उसका दुख
उन्होंने उसके दुख की तलाशी ली
लेकिन वहाँ मिला उसका क़ैदख़ाना
उन्होंने उसके क़ैदख़ाने की तलाशी ली
लेकिन वहाँ वे सिर्फ़ ख़ुद थे
ज़ंजीरों में बंधे हुए ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास