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ज़रा सा मान मिला आत्म मुग्ध हो बैठे / आर्य हरीश कोशलपुरी
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ज़रा सा मान मिला आत्म मुग्ध हो बैठे
किसी से ठन जो गई आप क्रुद्ध हो बैठे
लड़ाई और बखेड़े सराय की ख़ातिर
अहम् ने पाँव पसारे औ युद्ध हो बैठे
किसी को वैर किसी को क्षमा सिखाकर तुम
ये दोहरा पाठ पढ़ाकर प्रबुद्ध हो बैठे
बना के राज महल मठ विहार कहते जी
बड़े आसान तरीक़े से बुद्ध हो बैठे
हज़ारों साल के बिगड़े हुए चलन के हित
ज़रा सा वक़्त दिया और क्षुब्ध हो बैठे
नहा के नित्य पसीने अशुद्ध रहता मैं
रुधिर में आप नहा करके शुद्ध हो बैठे