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ज़रा सी बात पर अख़बार भी क्या-क्या लगे बकने / कांतिमोहन 'सोज़'

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ज़रा-सी बात पर अख़बार भी क्या-क्या लगे बकने ।
अगर वो तोप उन्निस थी तो इक्किस थे जवां अपने ।।

हम अपनी खाल की जूती बनाकर क्यूँ न पहनाएँ
बदलना रंग आख़िर आपसे सीखा है गिरगिट ने ।

इधर ये और उधर वो अपनी बदहाली पे रोता है
किसी नंगे की पॉकेट मार दी देखो गिरहकट ने ।

सितम तो है कि मोटे टाट ने रेशम की भद पीटी
किया है हिन्द की हॉकी का बड़ा ग़र्क किरकिट ने ।

न जेण्टलमैन ही था और न देहाती था ये खादिम
मगर कुछ था कि मुझको देखकर शुरफ़ा लगे हँसने ।

कहीं सोने की ईंटें रखके वो ख़ामोश बैठे हैं
वतन को बेचनेवाले भी दुश्मन तो नहीं अपने ।

ज़रा दिल थामकर बैठो ये कलजुग का ज़माना है
ज़माने-भर के रावण राम की माला लगे जपने ।।