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ज़रूरी / कुँअर रवीन्द्र

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आदमी के लिए
वह सब ज़रूरी है
जो वास्तव में ज़रूरी नहीं है
 
आदमी के लिए
वह सब बेकार है
जो वास्तव में बेकार नहीं होता
उतना ही जितना कि
आदमी का आदमी होना
या फिर नहीं होना
 
हर बेकार चीज़
बेकार होती है
चाहे वह आदमी हो या चीज़
तब हर बेकार चीज़ की तरह
आदमी भी
एक विचार भर रह जाता है
आदमियों के बीच
बेकार चीज़ों की तरह