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ज़हराबे-ग़मे-हयात पी सकता हूँ / रमेश तन्हा

 
ज़हराबे-ग़मे-हयात पी सकता हूँ
जो ज़ख़्म दिये वक़्त ने सी सकता हूँ
नौमीदी-ए-पैहम का भला हो कि मैं अब
बे यारो-मददगार भी जी सकता हूँ।