ज़हराबे-ग़मे-हयात पी सकता हूँ
जो ज़ख़्म दिये वक़्त ने सी सकता हूँ
नौमीदी-ए-पैहम का भला हो कि मैं अब
बे यारो-मददगार भी जी सकता हूँ।
ज़हराबे-ग़मे-हयात पी सकता हूँ
जो ज़ख़्म दिये वक़्त ने सी सकता हूँ
नौमीदी-ए-पैहम का भला हो कि मैं अब
बे यारो-मददगार भी जी सकता हूँ।